बारिश की शुरुआत होते ही इन पक्षियों का आगमन ग्राम लचकेरा में होने लगता है
अंडों से निकल रहे अब नन्हे ओपन बिल स्ट्रोक
फिंगेश्वर ब्लॉक मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूरी पर बसा ग्राम पंचायत लचकेरा इन दिनों प्रवासी प्रक्षियों की आवाज से गुंजायमान होने लगा है,ग्राम पंचायत लचकेरा जो कि पक्षियों की शरणस्थली के रूप में विख्यात हो चुका हैं। ग्राम लचकेरा में प्रजनन के लिए एशियन ओपन बिल स्ट्रोक मानसून के पहले से ही यहाँ पहुँच चुके है, व अब उनके अंडों से नन्हे ओपन बिल भी निकलना शुरू हो गया है,वर्तमान में इस ग्राम में लगभग इनकी संख्या हजारो से भी ज्यादा आंकी जा रही है,बारिश में अब इन प्रवासी पक्षियों की संख्या में वृद्धि होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
बारिश की शुरुआत होते ही इन पक्षियों का आगमन ग्राम में होने लगता है और जैसे-जैसे बारिश अधिक होती है व नदीयों में पानी का बहाव बढ़ता जाता है वैसे ही इसकी संख्या में नन्हे मेहमान के आ जाने से वृद्धि हो जाती है, लचकेरा ग्राम के पीपल, आम, बरगद,इमली के वृक्षों में इन पक्षियों का अधिकतर बसेरा होता है। ग्रामीणों ने बताया कि बारिश तेज होने व नदी नाले में पानी भरने के साथ इन पक्षियों का ग्राम लचकेरा में आना ज्यादा हो जाता है और ग्राम लचकेरा में अपना आशियाना बनाना शुरू कर देते हैं,स्थानीय ग्रामीण इन प्रवासी पक्षियों को सारस या कोकड़ा के नाम से जानते हैं।लेकिन इनको एशियन ओपन बिल स्ट्रोक व वैज्ञानिक नाम एनास्टोमस ओसिटेंस है।
यह पक्षी बांग्लादेश, कंबोडिय़ा, चीन, भारत, आलोस, मलेशिया, म्यामार, नेपाल,श्रीलंका, थाईलैण्ड व वियतनाम में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है, प्राय: अन्य पक्षियों की तरह इस पक्षी का प्रजनन काल भी जुलाई माह में प्रारंभ होता है, प्रजनन के लिए यह पक्षी प्राय: उन स्थानों की तलाश करता है, जहां पानी तथा पर्याप्त आहार की उपलब्धता हो। छत्तीसगढ़ में यह पक्षी प्राय: महानदी एवं उनकी सहायक नदियों के आसपास के गावों में डेरा जमाता है।
जून माह के प्रारंभ होते ही लचकेरा ग्राम पहुंचे एशियन ओपन बिल स्ट्रोक अभी आसपास तिनके ढूंढ कर गांव के बबूल, पीपल, बरगद व इमली के पेड़ों में घोषला बना कर रहते है, ग्रामीणों ने बताया कि जुलाई माह में मादा पक्षी घोषला में अण्डा दे देते है व जुलाई के आखरी सप्ताह व अगस्त के पहले हफ़्ते तक नन्हें ओपन बिल पक्षी बाहर आ जाते है ,कुछ नन्हे मेहमान अब आये है तो पूरा गांव इनकी कलरव से अब गूंजायमान होने लगा है
मेहमान पक्षियों को गांव में मिलता है संरक्षण, व उनको मारने पर है दंड
गांव में इन मेहमान पक्षियों को संरक्षण मिलने की वजह से ये मेहमान पूरी आजादी से गांव व आसपास में विचरण करते है, व लचकेरा ग्राम में पहुंचे प्रवासी पक्षियों को मारने पर प्रतिबंध है। ग्रामीणों ने बताया कि यदि कोई भी व्यक्ति इन पक्षियों को मारता है तो उसे अर्थ दण्ड भी दिया जाता है,इसकी सूचना देने पर पुरस्कार भी दिया जाता है, साथ ही कोई व्यक्ति बार बार यह अपराध करता है तो स्थानीय बस्ती समिति के द्वारा उस व्यक्ति के खिलाफ थाने में अपराध दर्ज करवाने का नियम बस्ती के लोगों ने बनाया है।
किसानों को पहुचाते है लाभ
लचकेरा ग्राम में प्रजनन के लिए पहुंचे ओपन बिल स्ट्रोक पक्षी को खास आहार मछली, घोंघा, केकड़ा व किड़ा मकोड़ा है। प्रवासी पक्षी इन सभी जीव जंतुओं को भोजन के रूप में लेना पंसद करते है। ग्रामीणों ने बताया कि इन पक्षियों के द्वारा खेत में जो किट होते हैं, उन्हें भी ये चुन-चुन कर खाते हैं। जिससे किसानों के खेतों में बीमारी भी कम होती है। एक प्रकार से ये पक्षी लाभ पहुंचाते हैं।
तामेश्वर साहू ,प्रधान संपादक
अंडों से निकल रहे अब नन्हे ओपन बिल स्ट्रोक
फिंगेश्वर ब्लॉक मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूरी पर बसा ग्राम पंचायत लचकेरा इन दिनों प्रवासी प्रक्षियों की आवाज से गुंजायमान होने लगा है,ग्राम पंचायत लचकेरा जो कि पक्षियों की शरणस्थली के रूप में विख्यात हो चुका हैं। ग्राम लचकेरा में प्रजनन के लिए एशियन ओपन बिल स्ट्रोक मानसून के पहले से ही यहाँ पहुँच चुके है, व अब उनके अंडों से नन्हे ओपन बिल भी निकलना शुरू हो गया है,वर्तमान में इस ग्राम में लगभग इनकी संख्या हजारो से भी ज्यादा आंकी जा रही है,बारिश में अब इन प्रवासी पक्षियों की संख्या में वृद्धि होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
बारिश की शुरुआत होते ही इन पक्षियों का आगमन ग्राम में होने लगता है और जैसे-जैसे बारिश अधिक होती है व नदीयों में पानी का बहाव बढ़ता जाता है वैसे ही इसकी संख्या में नन्हे मेहमान के आ जाने से वृद्धि हो जाती है, लचकेरा ग्राम के पीपल, आम, बरगद,इमली के वृक्षों में इन पक्षियों का अधिकतर बसेरा होता है। ग्रामीणों ने बताया कि बारिश तेज होने व नदी नाले में पानी भरने के साथ इन पक्षियों का ग्राम लचकेरा में आना ज्यादा हो जाता है और ग्राम लचकेरा में अपना आशियाना बनाना शुरू कर देते हैं,स्थानीय ग्रामीण इन प्रवासी पक्षियों को सारस या कोकड़ा के नाम से जानते हैं।लेकिन इनको एशियन ओपन बिल स्ट्रोक व वैज्ञानिक नाम एनास्टोमस ओसिटेंस है।
यह पक्षी बांग्लादेश, कंबोडिय़ा, चीन, भारत, आलोस, मलेशिया, म्यामार, नेपाल,श्रीलंका, थाईलैण्ड व वियतनाम में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है, प्राय: अन्य पक्षियों की तरह इस पक्षी का प्रजनन काल भी जुलाई माह में प्रारंभ होता है, प्रजनन के लिए यह पक्षी प्राय: उन स्थानों की तलाश करता है, जहां पानी तथा पर्याप्त आहार की उपलब्धता हो। छत्तीसगढ़ में यह पक्षी प्राय: महानदी एवं उनकी सहायक नदियों के आसपास के गावों में डेरा जमाता है।
जून माह के प्रारंभ होते ही लचकेरा ग्राम पहुंचे एशियन ओपन बिल स्ट्रोक अभी आसपास तिनके ढूंढ कर गांव के बबूल, पीपल, बरगद व इमली के पेड़ों में घोषला बना कर रहते है, ग्रामीणों ने बताया कि जुलाई माह में मादा पक्षी घोषला में अण्डा दे देते है व जुलाई के आखरी सप्ताह व अगस्त के पहले हफ़्ते तक नन्हें ओपन बिल पक्षी बाहर आ जाते है ,कुछ नन्हे मेहमान अब आये है तो पूरा गांव इनकी कलरव से अब गूंजायमान होने लगा है
मेहमान पक्षियों को गांव में मिलता है संरक्षण, व उनको मारने पर है दंड
गांव में इन मेहमान पक्षियों को संरक्षण मिलने की वजह से ये मेहमान पूरी आजादी से गांव व आसपास में विचरण करते है, व लचकेरा ग्राम में पहुंचे प्रवासी पक्षियों को मारने पर प्रतिबंध है। ग्रामीणों ने बताया कि यदि कोई भी व्यक्ति इन पक्षियों को मारता है तो उसे अर्थ दण्ड भी दिया जाता है,इसकी सूचना देने पर पुरस्कार भी दिया जाता है, साथ ही कोई व्यक्ति बार बार यह अपराध करता है तो स्थानीय बस्ती समिति के द्वारा उस व्यक्ति के खिलाफ थाने में अपराध दर्ज करवाने का नियम बस्ती के लोगों ने बनाया है।
किसानों को पहुचाते है लाभ
लचकेरा ग्राम में प्रजनन के लिए पहुंचे ओपन बिल स्ट्रोक पक्षी को खास आहार मछली, घोंघा, केकड़ा व किड़ा मकोड़ा है। प्रवासी पक्षी इन सभी जीव जंतुओं को भोजन के रूप में लेना पंसद करते है। ग्रामीणों ने बताया कि इन पक्षियों के द्वारा खेत में जो किट होते हैं, उन्हें भी ये चुन-चुन कर खाते हैं। जिससे किसानों के खेतों में बीमारी भी कम होती है। एक प्रकार से ये पक्षी लाभ पहुंचाते हैं।
तामेश्वर साहू ,प्रधान संपादक