छत्तीसगढ़ी गीतों में झुमे दर्शक ,नाईट कलाकार सुनील सोनी ने दर्शकों को अंतिम तक बांधे रखा
राजिम। राजिम माघी पुन्नी मेला के सांस्कृतिक मंच दर्शकों से चारो ओर खचाखच भरा हुआ है। इसके मुख्य कारण छत्तीसगढ़ी फिल्म के प्रसिद्ध गायक सुनील सोनी का कार्यक्रम का था। जिससे दर्शक बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। प्रारंभ में इनके सहयोगी कलाकारो के द्वारा मंच में गीत के धुन बजाकर समां बांधा। राजिम मुख्य मंच में सातवें दिन प्रथम कार्यक्रम में पंडवानी गायन की प्रस्तुति रही। पंडवानी छत्तीसगढ़ का वह एकल नाट्य हैं। इसका अर्थ पाण्डव वानी अर्थात पाण्डव कथा यानी महाभारत की कथा। ये कथाएॅं छत्तीसगढ़ की परधान तथा देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परम्परा हैं। परधान गोड़ की एक उपजाति हैं और देवार घुमन्तु जाति है। इन दोनो जातियों की बोली वाद्यों में अंतर हैं। परधान जाति के कथावाचक या वाचिका के हाथ में किकनी होता हैं और देवारों के हाथों में रूझु होता हैं। परधानों ने और देवारों ने पंडवानी लोक महाकाव्य को पूरे छत्तीसगढ़ में फैलाया।
पंडवानी गायक के रूप में तीजन बाई, ऋति वर्मा, खूबलाल यादव, रामाधर सिन्हा, फूलसिंग साहू, लक्ष्मी साहू, प्रभा यादव, सोमे शास्त्री, पुनिया बाई, जेना बाई, चेतन देवांगन प्रमुख हैं। इस मंच पर आज चेतन देवांगन ने पंडवानी के माध्यम से दुर्योधन और कृष्ण के संवाद का वर्णन किया जिसमें कृष्ण दुर्योधन से पाण्डव के लिए आधे राज्य की मांग करने जाते है और कृष्ण बताते है कि पाण्डव अज्ञातवास से वापस आ चुके है और तुम्हारे वादे के अनुसार आधा राज्य दे देना चाहिए, लेकिन दुर्योधन कहता है कि जंगल जाने पर उनकी हिम्मत कम हो गई भीम ने कहा था की दुर्योधन की जंघा को चीर कर मै द्रोपती के केश में लगाऊंगा नही तो मैं कुन्ती पुत्र नहीं और अर्जुन ने कहा था भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के सर को काट दुंगा नही तो मै सूर्य पुत्र नहीं कहलाऊंगा अब उन्हें क्या हुआ जो आपको राज्य मांगने के लिए भेजे है तभी कृष्ण कहते है कि वे तुम्हारे भाई है इस हिसाब से आधे राज्य की हिस्सेदारी बनती है। दुर्योधन देने से इंकार करने के बाद कृष्ण जाने को तैयार होते है। तभी दुर्योधन कृष्ण से कहता है कि कम से कम खाना खाकर जाइए। तभी कृष्ण कहता है अभी आपने कहा था कि द्वारिकाधीश के लिए ऐसा खाना पकाइए जिसे उनके परदादा ने भी न खाया हो तभी द्वारिकाधीश चुटकी लेते हुए कहते है जब मेरे परदादा यहा नहीं खायें तब मैं क्यों खाऊ? ऐसी सुन्दर पड़वानी को सुनकर दर्शक भी भावविभोर हो गये और इस पड़वानी से हमे ही संदेश मिलता है कि हमे कभी भी घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि घमण्ड का परिणाम हमें महाभारत में देखने को मिल गया है इसीलिए हमें जीवन में घमण्ड को स्थान न देकर सद्भावना को स्थान देना चाहिए।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के दूसरी कड़ी में छत्तीसगढ़ के सुपरस्टार सुनील सोनी परिचय के मोहताज नहीं है। हर वर्ग के दर्शको का दिल की धड़कन बन गई हैं। जिसकी कार्यक्रम की प्रस्तुति शुरू होते ही दर्शको की भीड़ होना आरंभ हो गया। सुनील नाइट्स की पहली प्रस्तुति अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार... से शुरू हुई। ये गीत आज वर्तमान में राजकीय गीत के रूप में प्रस्तुत की जा रही हैं। वा रे मोर पड़की मैना तोर कजरैली नैना...की गीत ने दर्शक का मनमोह लिया। पारम्पारिक छत्तीसगढ़ गीत ददरिया जो कि एक प्रेम गीत हैं, लेकिन हमारे हाॅं धार्मिक भाव में भी ददरिया गाया जाता है-चूड़ी रे पहिरे... की सामूहिक पारम्पारिक वेशभूषा की प्रस्तुति में दर्शक भाव विभोर हो गए। इस नृत्य ने खूब तालिया बटोरी। बुलंदी की दुनिया को गायकी के क्षेत्र में छूने वाले सुनील सोनी को सुनने महानदी की गोद में हजारों लोग बैठे रहे और सैकड़ों लोगो ने खड़े होकर आनंद लिया। ये वे दौना पान... जैसे ही शुरू हुआ दर्शकों ने तालियों और सीटियों की आवाज से पूरा राजिम क्षेत्र गूंज गया। माॅ-बाप को समर्पित गीत छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध गीत छईया भुईया ल छोड़ जवैया तै जाबे कहा रे... की प्रस्तुति ने तो धूम ही मचा दिया। माता-पिता और धरती के प्रति लगाव सभी में होता है। दर्शक बहुत ध्यान मग्न हो गए और पूरे छत्तीसगढ़ महतारी के नारी से पूरा मंच गूंज गया।
मुख्यमंच पर एक से बढ़कर एक झमाझम प्रस्तुति की कड़ी में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी गीत काने मा बाली अउ गोरा-गोरा गाल सुनकर और नृत्य से दर्शक झूमने पर विवश हो गए। ये दे जिदंगी के नई हे गा ठिकाना... की बहुत मनमोहक प्रस्तुति ने तहलका मचाया और खड़े होकर नाचने लगे। नौ महीना ले कोख मे रख के... झन भुलव माॅं बाप ल... की प्रस्तुति से दर्शक भाव-विभोर हो गए। अपने-अपने माता-पिता के प्रति जोरदार जयकारा लगाये और तालियों की गढ़गढ़हट से स्वागत किए। माटी ल छोड़ी कहाॅं जाबे रे संगी माटी के कर्जा ल चुकाना... बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति में सभी डूब गए और जन्म भूमि के प्रति श्रद्धा के भाव का संचार हो गया। मोर संग चलव रे मोर संग चलव न... की प्रस्तुति ने समां बाधे रखा अंत तक दर्शक मुख्यमंच की समीप डटे रहे और कलाकारों का उत्साह वर्धन करते रहे। मया होगे रे तोर संग मया होगे न... गीत सुनकर सिटियों की आवाज लगातार आने लगा। इसी कड़ी में गीत आजा सवरेगी तय हा जिंदगी में मोर.... की शानदार प्रस्तुती ने दिल की धड़कन को तेज कर दिया इस गीत ने खूब तालियाॅ बटोरी। कार्यक्रम का संचालन निरंजन साहू, मनोज सेन एवं महेन्द्र पंत द्वारा किया। कलाकारों का सम्मान एसपी भोजराम पटेल, अपर कलेक्टर जेआर चैरासिया, कांग्रेस नेता रतीराम साहू, विकास तिवारी, गिरीश राजानी, सौरभ शर्मा टंकू सोनकर, प्रवीण सोनकर, उत्तम निषाद, रामानंद साहू, साधू निषाद, चेतन सोनकर, चंद्रहास, विनोद सोनकर, अरविंद यदु, पत्रकार गोरेलाल साहू, राकेश साहू, रानू साहू, हरि साहू, शीतल चैबे आदि जनप्रतिनिधियों द्वारा किया गया।
तामेश्वर साहु ,गरियाबंद